सुप्रीम कोर्ट ने श्रीलंकाई तमिल नागरिक की निर्वासन रुकवाने की याचिका खारिज की: "भारत कोई धर्मशाला नहीं"
- Asliyat team

- May 19
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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक श्रीलंकाई तमिल नागरिक की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने अपने निर्वासन पर रोक लगाने की मांग की थी। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत की 140 करोड़ की आबादी पहले से ही संघर्ष कर रही है और यह "धर्मशाला" नहीं है जो दुनिया भर के शरणार्थियों को आश्रय दे सके।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए कहा, "क्या भारत दुनिया भर के शरणार्थियों को आश्रय देने वाला है? हम पहले से ही 140 करोड़ की आबादी के साथ संघर्ष कर रहे हैं। यह कोई धर्मशाला नहीं है जहां हम हर विदेशी नागरिक को आश्रय दें।"
याचिकाकर्ता, एक श्रीलंकाई तमिल नागरिक, को 2015 में लिट्टे (LTTE) से संबंध रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। 2018 में उसे गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत दोषी ठहराया गया और 10 साल की सजा सुनाई गई। बाद में मद्रास उच्च न्यायालय ने उसकी सजा को घटाकर 7 साल कर दिया और सजा पूरी होने के तुरंत बाद उसे देश छोड़ने का आदेश दिया।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि यदि उसे श्रीलंका वापस भेजा गया तो उसकी जान को खतरा है। उसने यह भी बताया कि उसकी पत्नी और बच्चे भारत में रह रहे हैं और उनकी स्वास्थ्य स्थितियाँ गंभीर हैं।सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन नहीं हुआ है क्योंकि उसकी हिरासत कानून के अनुसार थी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 19 के तहत भारत में बसने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को ही प्राप्त है।
न्यायमूर्ति दत्ता ने याचिकाकर्ता से पूछा, "आपका यहां बसने का क्या अधिकार है?" जब याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि वह एक शरणार्थी है और उसकी जान को खतरा है, तो अदालत ने सुझाव दिया कि वह किसी अन्य देश में शरण ले सकता है।
यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के हालिया रुख के अनुरूप है, जिसमें उसने रोहिंग्या मुसलमानों की निर्वासन रोकने की याचिका को भी खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत की सीमित संसाधनों और बढ़ती आबादी के संदर्भ में विदेशी नागरिकों को स्थायी रूप से बसने की अनुमति देने के प्रति सतर्कता को दर्शाता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि भारत की प्राथमिकता अपने नागरिकों की भलाई है और वह दुनिया भर के शरणार्थियों के लिए आश्रय स्थल नहीं बन सकता।








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