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रेलवे की पटरियों पर इतिहास गढ़ने वाली सुरेखा यादव


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सुरेखा शंकर यादव (जन्म नाम: सुरेखा रामचंद्र भोसले), महाराष्ट्र के सतारा जिले में पैदा हुईं। उनका जन्म 2 सितंबर 1965 को हुआ था। वह भारत की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर ही नहीं, बल्कि एशिया की पहली महिला लोको पायलट मानी जाती है।


बचपन से ही सुरेखा का झुकाव टेक्निकल विषयों की ओर था। उनके पिता कृषि करते थे, परिवार में पाँच बच्चे थे और सुरेखा सबसे बड़ी। उन्होंने सतारा के सेंट पौल कॉन्वेंट हाई स्कूल से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। बाद में सरकार पॉलिटेक्निक, कराड से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। 1987 में उन्होंने रेलवे भर्ती बोर्ड मुंबई में आवेदन किया। Kalyan Training School में छह महीने ट्रेनिंग ली। वहाँ से उन्होंने असिस्टेंट ड्राइवर के रूप में सेवा शुरू की। 1989 तक वह नियमित असिस्टेंट ड्राइवर बनीं। 1996 में गुड्स ट्रेन ड्राइवर के रूप में प्रमोशन मिला।


महत्वपूर्ण मील के पत्थर और उपलब्धियाँ

  1. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2021 पर, भारत की पहली महिला लोको पायलट सुरेखा यादव के नेतृत्व में, मुंबई से लखनऊ के लिए एक विशेष ट्रेन का संचालन पूरी तरह से महिला चालक दल के साथ किया गया। इस ट्रेन ने रेलवे क्षेत्र में महिला सशक्तिकरण का जश्न मनाया, जहाँ ड्राइवर से लेकर ऑन-बोर्ड स्टाफ तक, पूरा संचालन महिलाओं द्वारा संभाला गया।


  2. Deccan Queen चलाना: 8 मार्च 2011 (अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर), उन्होंने Deccan Queen ट्रेन (पुणे से CST मुंबई) को चलाया। यह मार्ग Western Ghats की पहाड़ी इलाके से गुजरता है, जिसमें कठिन परिस्थिति होती है। इस दिन उन्हें CST स्टेशन पर मान्यता भी मिली।


  3. Vande Bharat Express: 13 मार्च 2023 को सुरेखा यादव प्रथम महिला बनीं जिन्होंने Vande Bharat Express (सेमी-हाई-स्पीड ट्रेन) को चलाया — सोलापुर से मुंबई (CSMT) का मार्ग।


  4. घाट ट्रेन ड्राइविंग: वे Western Ghats की घाट (hill) ट्रेन सेवाओं को भी संभालती रही हैं, जहाँ ट्रेनें दो-इंजन (twin engine) की होती हैं और चुनौतीपूर्ण ट्रैक और परिस्थितियाँ होती हैं।


  5. प्रशिक्षक की भूमिका: बाद में उन्होंने ट्रेन ड्राइवरों के प्रशिक्षण केंद्रों में भी काम किया, जैसे कि Kalyan में Driver’s Training Centre (DTC), जहाँ वे सीनियर इंस्ट्रक्टर के रूप में नई पीढ़ी को ट्रेनिंग देती हैं।


एक पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान क्षेत्र में सुरेखा को शुरुआत में कई तरह की शंकाएँ और सामाजिक रूढ़ियाँ झेलनी पड़ीं। लेकिन उन्होंने बताया है कि उनके माता-पिता और परिवार ने उन्हें कभी हतोत्साहित नहीं किया। उनका समर्थन और विश्वास उनका बड़ा मोटिवेशन रहा। लगातार सीखने की प्रवृत्ति, समर्पण, तकनीकी प्रशिक्षण और अनुशासन उनके करियर की नींव रहे।


सुरेखा यादव 30 सितंबर 2025 को भारतीय रेलवे से सेवा निवृत्ति (retire) कर रही हैं। उनकी सेवा अवधि लगभग 36 वर्ष की रही। इस दौरान उन्होंने कई तरह की ट्रेनें चलाईं — लोकल, मेल-एक्सप्रेस, घाट ट्रेनें और अब Vande Bharat Express जैसी आधुनिक ट्रेन। उनका करियर महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने दिखाया कि जो क्षेत्र पारंपरिक रूप से पुरुषों का माना जाता है, वहां भी महिलाएँ सक्षम हैं अगर अवसर मिलें और हौसला हो।


सुरेखा यादव की कहानी सिर्फ एक व्यक्तिगत सफलता नहीं है, यह समूचे समाज के लिए संदेश है — कि सीमाएँ सिर्फ मानसिक होती हैं, और अगर सोच खुले हो, तो पारिवारिक समर्थन हो, और मेहनत साथ हो, तो कोई भी क्षेत्र असंभव नहीं।

उनकी उपलब्धियों ने रेलवे की दुनिया को बदलने में योगदान दिया है, और आने वाली महिलाओं को यह दिखाया है कि वे भी इंजन चला सकती हैं, कुछ बड़ा कर सकती हैं। उनका संघर्ष, उनकी सफलता, और उनकी दृढ़ता इतिहास में दर्ज है।

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