सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: समय रैना और अन्य कॉमेडियन्स को मिली फटकार
- Asliyat team

- Aug 25
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सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: “व्यावसायिक अभिव्यक्ति में किसी समुदाय की भावनाओं को आहत नहीं कर सकते”
समय रैना और अन्य कॉमेडियन्स को मिली फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने आज कॉमेडियन समय रैना और कुछ अन्य स्टैंड-अप कॉमेडियन्स को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि “जब आप भाषण या अभिव्यक्ति का व्यवसायिक इस्तेमाल करते हैं, तो किसी भी समुदाय की भावनाओं को आहत नहीं कर सकते।” यह टिप्पणी उन चुटकुलों को लेकर की गई, जिनमें दिव्यांगजनों का मज़ाक उड़ाया गया था।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
अदालत ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है, लेकिन यह असीमित नहीं है। जब कोई कलाकार या कॉमेडियन व्यावसायिक मंच पर प्रदर्शन करता है, तो उसकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। कमजोर वर्गों और दिव्यांग व्यक्तियों का अपमान करना किसी भी हाल में स्वीकार्य नहीं है।
हास्य और व्यंग्य की सीमा
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कॉमेडी और व्यंग्य समाज में आवश्यक हैं, लेकिन उनका उद्देश्य समाज को जोड़ना और सकारात्मक सोच को बढ़ावा देना होना चाहिए। यदि हास्य का इस्तेमाल किसी वर्ग को हाशिये पर धकेलने के लिए होता है, तो यह न केवल संविधान के खिलाफ है बल्कि सामाजिक सौहार्द को भी नुकसान पहुँचाता है।
संभावित कार्रवाई और निर्देश
सुनवाई के दौरान अदालत ने संकेत दिए कि भविष्य में इस तरह की सामग्री के खिलाफ सख्त कदम उठाए जा सकते हैं। अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि यदि कॉमेडियन्स ने आपत्तिजनक सामग्री प्रस्तुत की है, तो उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी होगी।
“अपने चैनलों पर माफी दिखाएँ”
सुप्रीम कोर्ट ने कॉमेडियन्स को यह भी निर्देश दिया कि वे अपनी माफी उन चैनलों और प्लेटफॉर्म्स पर दिखाएँ, जहाँ उन्होंने आपत्तिजनक सामग्री साझा की थी। अदालत का कहना है कि यही सही तरीका है जिससे प्रभावित समुदाय को न्याय और सम्मान मिल सकेगा।
भविष्य में कड़ी सज़ा की चेतावनी
बेंच ने कॉमेडियन्स को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि इस तरह की प्रवृत्ति नहीं रुकी तो उन पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। अदालत ने टिप्पणी की—“आज यह मामला दिव्यांगों को लेकर है, कल यह महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों या बच्चों को लेकर हो सकता है... आखिर यह कहाँ जाकर रुकेगा?”
मज़ाक और अपमान में फर्क
कोर्ट ने साफ कहा कि “मज़ाक और अपमान में अंतर होता है।” हास्य और कला का उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ समाज में आपसी सद्भाव बढ़ाना होना चाहिए। किसी की पीड़ा को हंसी का साधन बनाना समाज के लिए हानिकारक है।







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