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भारत-अमेरिका में नई व्यापार वार्ता: टैरिफ विवाद के बीच बातचीत की शुरुआत


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भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संबंधों में तनाव एक बार फिर चर्चा में है। हाल ही में अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यातित वस्तुओं पर 50% तक टैरिफ लगाने के बाद दोनों देशों के बीच पहली आमने-सामने की बातचीत नई दिल्ली में शुरू हुई है। इस वार्ता को द्विपक्षीय संबंधों में नए अध्याय की शुरुआत माना जा रहा है।


अगस्त 2025 में अमेरिका ने भारत से आयातित कई उत्पादों पर 25% पारस्परिक (reciprocal) और 25% अतिरिक्त दंडात्मक  टैरिफ लगाया। अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि भारत का रूस से कच्चे तेल का आयात इस निर्णय के पीछे एक प्रमुख कारण है। इस कदम के बाद भारतीय निर्यातकों को अमेरिकी बाज़ार में बड़ा झटका लगा और निर्यात में गिरावट दर्ज की गई।


अमेरिका की ओर से दक्षिण एवं मध्य एशिया मामलों के व्यापार प्रतिनिधि ब्रेंडन लिन्च इस वार्ता का नेतृत्व कर रहे हैं, जबकि भारत की ओर से वाणिज्य विभाग के विशेष सचिव राजेश अग्रवाल बातचीत कर रहे हैं। यह बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि टैरिफ विवाद शुरू होने के बाद यह पहली सीधी वार्ता है।


मुख्य मुद्दे

  • टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाएँ: अमेरिका का आरोप है कि भारत ऊँचे शुल्क और आयात प्रतिबंधों के कारण अमेरिकी सामान की पहुँच सीमित करता है।

  • रूस से तेल आयात: अमेरिका भारत से चाहता है कि वह रूस पर अपनी निर्भरता घटाए, जबकि भारत इसे अपनी रणनीतिक स्वायत्तता का हिस्सा मानता है।

  • कृषि और डेयरी सेक्टर: भारत ने साफ किया है कि कृषि, डेयरी और सार्वजनिक खरीद (procurement) जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में कोई समझौता नहीं होगा।

  • निर्यातक समुदाय की चिंताएँ: अमेरिकी बाज़ार में ऑर्डर कैंसिल होने लगे हैं। भारतीय निर्यातकों ने सरकार से तरलता और आसान ऋण की व्यवस्था की माँग की है।


दोनों देशों की स्थिति

  • अमेरिका: वह चाहता है कि भारत अपनी टैरिफ दरों को घटाए, गैर-टैरिफ प्रतिबंधों को कम करें, और रशिया से तेल की खरीद को सीमित करे।

  • भारत: भारत का कहना है कि उसके निर्णय-निर्माण में स्वायत्तता होनी चाहिए, कि व्यापार समझौते (bilateral trade agreement) दोनों पक्षों के हितों पर आधारित हों, और उन क्षेत्रों की रक्षा की जाए जिनमें देश की अर्थव्यवस्था और कृषक जीवन-यापन जुड़ा है।


यह ताज़ा वार्ता एक प्रारंभिक चरण है; भविष्य में वार्ता में प्रगति हो सकती है। दोनों देशों के बीच सकारात्मक मानसिकता पाई जा रही है, लेकिन अभी कई असमंजस्य और चुनौतियाँ बाकी हैं।


विशेषज्ञों का मानना है कि यदि दोनों देश किसी साझा समझौते पर पहुँचते हैं तो न केवल निर्यातकों को राहत मिलेगी बल्कि वैश्विक बाज़ारों में भी सकारात्मक संदेश जाएगा। लेकिन अगर वार्ता विफल रहती है तो व्यापार घाटा और बढ़ सकता है और द्विपक्षीय संबंधों में तनाव गहराएगा।

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