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दिल्ली उच्च न्यायालय ने CBI द्वारा अवैध रूप से इंटरसेप्ट की गई कॉल्स और संदेशों के ट्रांसक्रिप्ट नष्ट करने की याचिका खारिज की

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक आरोपी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा कथित रूप से अवैध रूप से इंटरसेप्ट की गई कॉल्स और संदेशों के ट्रांसक्रिप्ट नष्ट करने की मांग की थी। न्यायमूर्ति अमित महाजन की एकल पीठ ने इस मामले में 26 जून को अपना आदेश सुनाया।


आरोपी आकाश दीप चौहान ने दावा किया था कि CBI ने भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5(2) का उल्लंघन करते हुए उसकी कॉल्स और संदेशों की इंटरसेप्शन की थी, जो उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उसने इन ट्रांसक्रिप्ट्स को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करने की अनुमति देने की मांग की थी।



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वहीं, CBI ने अदालत में प्रस्तुत किया कि इंटरसेप्शन आदेश केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा सार्वजनिक सुरक्षा के हित में जारी किए गए थे, और ये आदेश भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5(2) के तहत वैध थे। CBI ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों में, विशेष रूप से जब आर्थिक अपराधों की गंभीरता अधिक हो, तो ऐसे साक्ष्य स्वीकार्य होते हैं।


अदालत ने अपने आदेश में कहा कि हालांकि प्रत्येक व्यक्ति को गोपनीयता का मौलिक अधिकार है, लेकिन यह अधिकार निरपेक्ष नहीं है और इसे कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार सीमित किया जा सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार जैसे गंभीर अपराधों के मामलों में, सार्वजनिक सुरक्षा के हित में की गई इंटरसेप्शन को वैध माना जा सकता है।


अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में आरोप गंभीर हैं, और यदि ये आरोप सिद्ध होते हैं, तो यह सार्वजनिक संस्थाओं की ईमानदारी और सार्वजनिक विश्वास को प्रभावित कर सकते हैं। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचार और आर्थिक अपराधों के मामलों में, यदि इंटरसेप्शन वैध प्रक्रिया के तहत की गई हो, तो संबंधित साक्ष्य को स्वीकार किया जा सकता है। यह निर्णय न्यायिक प्रणाली में भ्रष्टाचार के मामलों में साक्ष्य की स्वीकार्यता को लेकर महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करता है।

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