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ट्रम्प टैरिफ़ और भारतीय अर्थव्यवस्था : एक गहन विश्लेषण


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अंतरराष्ट्रीय व्यापार केवल वस्तुओं और सेवाओं का लेन-देन नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रों की आर्थिक सेहत, कूटनीति और रणनीतिक हितों का प्रतिबिंब भी होता है। भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक संबंध पिछले तीन दशकों में काफी गहरे हुए हैं। अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है और भारतीय वस्तुओं का एक तिहाई हिस्सा वहीं जाता है। ऐसे में जब अगस्त 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतीय वस्तुओं पर 50% तक के टैरिफ लगाने की घोषणा की, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ।


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध स्वतंत्रता के बाद धीरे-धीरे विकसित हुए। 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत वैश्विक व्यापार नेटवर्क से तेजी से जुड़ा और अमेरिका ने भारतीय IT, वस्त्र और सेवाओं को बड़े पैमाने पर अपनाया।


ट्रम्प की राजनीति का एक प्रमुख आधार “अमेरिका फर्स्ट” नीति रही है। 2017–2021 के कार्यकाल में भी उन्होंने चीन, यूरोप और भारत जैसे देशों पर आयात शुल्क लगाए थे। 2018 में अमेरिका ने भारत को “Generalized System of Preferences (GSP)” से बाहर कर दिया, जिससे लगभग 6 बिलियन डॉलर मूल्य के भारतीय निर्यात प्रभावित हुए थे। हालाँकि, 2020 के बाद भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों में कुछ सुधार हुआ।


2025 में ट्रम्प के पुनः सत्ता में आने के बाद उन्होंने रूस से भारत की कच्चे तेल की खरीद को लेकर नाराज़गी जताई और “अनुचित व्यापार” का हवाला देते हुए 25% प्रतिस्पर्धी टैरिफ और 25% दंडात्मक टैरिफ दोनों लागू कर दिए। यह फैसला एक तरह से भू-राजनीतिक दबाव और आर्थिक संरक्षणवाद का मिश्रण माना जा सकता है।


तात्कालिक प्रभाव

  1. निर्यात पर चोट: अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। वस्त्र, गहने, समुद्री उत्पाद (विशेषकर झींगा), फर्नीचर और चमड़ा भारतीय निर्यात की रीढ़ हैं। इन पर 50% शुल्क लगने से अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए भारतीय वस्तुएँ महँगी हो गईं। परिणामस्वरूप, भारत का बाज़ार हिस्सा वियतनाम, बांग्लादेश और चीन जैसे प्रतिस्पर्धी देशों के पास चला गया। अनुमान है कि लगभग 40–48 बिलियन डॉलर तक के निर्यात पर सीधा असर पड़ेगा।


  2. GDP में गिरावट: विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से भारत की GDP वृद्धि दर में लगभग 1% तक की कमी आ सकती है। HDFC बैंक का अनुमान है कि यह असर 40 आधार अंक (bps) तक हो सकता है।


  3. रोज़गार पर संकटवस्त्र और आभूषण उद्योग जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में लाखों श्रमिक बेरोज़गारी के खतरे में हैं। MSMEs, जो पहले से ही ऊँची लागत और कम मुनाफ़े से जूझ रहे हैं, इस दबाव को सहन नहीं कर पाएँगे।


  4. व्यापार संतुलन पर असरभारत और अमेरिका का व्यापार संतुलन पहले ही अमेरिका के पक्ष में रहा है। अब यह और बिगड़ेगा क्योंकि भारतीय निर्यात में कमी आएगी, जबकि अमेरिकी उत्पादों के लिए भारत ने अभी तक समान स्तर के टैरिफ़ नहीं लगाए हैं।


दीर्घकालिक प्रभाव

  1. प्रतिस्पर्धात्मकता में कमी: भारतीय उद्योग लंबे समय से अमेरिकी बाज़ार पर निर्भर हैं। लगातार टैरिफ बढ़ोतरी उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा से पीछे धकेल सकती है।

  2. आर्थिक विविधीकरण की आवश्यकता: यह संकट भारत को इस हकीकत का एहसास कराता है कि किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता ख़तरनाक हो सकती है। आने वाले समय में भारत को यूरोप, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे नए बाज़ारों में अपनी पहुँच बढ़ानी होगी।

  3. भारत-अमेरिका संबंधों पर दबाव: यह विवाद केवल आर्थिक नहीं है, बल्कि रणनीतिक रिश्तों को भी प्रभावित करता है। दोनों देशों का Quad, इंडो-पैसिफिक रणनीति और रक्षा सहयोग इस तनाव से प्रभावित हो सकता है।

  4. MSMEs का संकट: भारत के निर्यात का बड़ा हिस्सा MSMEs से आता है। उनके पास लागत घटाने और नए बाज़ार खोजने की क्षमता सीमित है। इस वजह से लाखों छोटे व्यवसाय बंद होने की स्थिति में पहुँच सकते हैं।


भारत की प्रतिक्रिया

भारतीय सरकार ने इस संकट का सामना करने के लिए कई कदम उठाए हैं—

  • GST में राहत और टैक्स कटौती ताकि निर्यातकों की लागत घटे।

  • क्रेडिट गारंटी योजनाएँ जिससे MSMEs को सस्ता और आसान कर्ज़ मिले।

  • निर्यात प्रोत्साहन योजनाएँ ताकि प्रभावित क्षेत्रों को सीधी मदद मिल सके।

  • घरेलू मांग पर ज़ोर ताकि निर्यात घटने पर भी उत्पादन जारी रहे।

  • नए बाज़ारों की तलाश यूरोप और एशिया में।


भविष्य की संभावनाएँ

यह संकट भारत के लिए केवल चुनौती ही नहीं, बल्कि अवसर भी है। यदि भारत अपनी नीतियों को सही दिशा में ढाले तो यह परिस्थिति उसे अधिक आत्मनिर्भर और विविधीकृत अर्थव्यवस्था बनने में मदद करेगी।

  1. “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” जैसी नीतियों को वास्तविक गति मिल सकती है।

  2. घरेलू खपत बढ़ाने पर ध्यान दिया जा सकता है, ताकि निर्यात पर निर्भरता घटे।

  3. नए वैश्विक साझेदार जैसे यूरोपीय संघ और ASEAN के साथ FTA (Free Trade Agreement) को प्राथमिकता दी जा सकती है।

  4. टेक्नोलॉजी और सेवा क्षेत्र को और मजबूत करके भारत निर्यात का संतुलन सेवाओं की ओर मोड़ सकता है, जहाँ वह पहले से ही प्रतिस्पर्धी है।


निष्कर्ष

ट्रम्प द्वारा लगाए गए 50% टैरिफ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए निस्संदेह एक गंभीर खतरा हैं। इसका प्रभाव निर्यात, GDP, रोज़गार और छोटे उद्यमों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देगा। परंतु यह भारत को अपनी कमजोरियों को समझने और दीर्घकालिक समाधान अपनाने का अवसर भी प्रदान करता है।


भारत की अर्थव्यवस्था की नींव मज़बूत है और यदि सरकार घरेलू खपत, निर्यात विविधीकरण और MSMEs के संरक्षण पर ध्यान देती है, तो यह संकट अवसर में बदला जा सकता है। अंततः, यह स्थिति भारत के लिए एक सबक है कि किसी एक बाज़ार पर अत्यधिक निर्भरता हमेशा जोखिमभरी होती है और एक मज़बूत अर्थव्यवस्था वही होती है, जो संकट को अवसर में बदल सके।

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