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गाज़ा में पत्रकारों की मौत


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गाज़ा में जारी इज़राइल-हमास संघर्ष लगातार आम नागरिकों और पत्रकारों के लिए भयावह साबित हो रहा है। हाल ही में नासर अस्पताल पर हुए इज़राइली हवाई हमले में पाँच पत्रकारों की मौत ने दुनिया को झकझोर कर रख दिया। बताया जाता है कि यह हमला “डबल टैप स्ट्राइक” था—पहली बार अस्पताल को निशाना बनाया गया और दूसरी बार उन पत्रकारों और राहतकर्मियों को, जो घटनास्थल पर मदद के लिए पहुँचे थे। मारे गए पत्रकारों में हुस्साम अल-मसरी (Reuters), मरियम अबू दग्गा (AP), मोहम्मद सलामा (Al Jazeera), मोहम्मद अबू तह (फ्रीलांसर) और अहमद अबू अजीज़ (Middle East Eye) शामिल हैं।


इस त्रासदी ने पत्रकारों की सुरक्षा और प्रेस स्वतंत्रता पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। युद्ध क्षेत्रों में पत्रकारों की मौजूदगी इसलिए अहम होती है ताकि दुनिया तक ज़मीनी सच्चाई पहुँचे। लेकिन गाज़ा में लगातार हो रही मौतों ने यह चिंता बढ़ा दी है कि क्या अब प्रेस भी युद्ध का लक्षित शिकार बन गया है। “कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स” (CPJ) के अनुसार, गाज़ा में अब तक लगभग 189 पत्रकारों की मौत हो चुकी है। यह आधुनिक इतिहास में पत्रकारों के लिए सबसे घातक संघर्ष माना जा रहा है।


अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस घटना की तीव्र प्रतिक्रिया हुई है। संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और कई देशों ने इसे अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का उल्लंघन बताया है और इज़राइल से जवाब मांगा है। भारत सहित अनेक देशों ने गहरी संवेदना व्यक्त की है और पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील की है। वैश्विक मीडिया संगठनों का कहना है कि यदि पत्रकार सुरक्षित नहीं रहेंगे, तो युद्ध क्षेत्र से आने वाली खबरें एकतरफ़ा और अप्रमाणिक रह जाएंगी।


यह हमला नैतिक और कानूनी प्रश्न भी खड़ा करता है। क्या युद्ध क्षेत्रों में काम करने वाले पत्रकारों को “कॉम्बैटेंट” यानी युद्धकर्मी माना जा रहा है? जिनेवा कन्वेंशन जैसे अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून पत्रकारों को नागरिक का दर्जा देते हैं और उन्हें निशाना बनाना युद्ध अपराध है। इसके बावजूद बार-बार होने वाली ऐसी घटनाएँ दिखाती हैं कि इन प्रावधानों का पालन जमीनी स्तर पर नहीं हो रहा।


गाज़ा और वेस्ट बैंक में प्रेस कवरेज पर अब और भी दबाव बढ़ेगा। स्थानीय लोगों की आवाज़ दुनिया तक पहुँचने में कठिनाई होगी, जिससे सूचना का संतुलन बिगड़ सकता है। वैश्विक स्तर पर भी पत्रकारों पर बढ़ते हमले मीडिया पर भरोसे को कमजोर करेंगे और सच्चाई तथा प्रचार के बीच की बहस को और गहरा करेंगे।

यह समय है जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पत्रकारों की सुरक्षा पर ठोस कदम उठाने होंगे। संयुक्त राष्ट्र या अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के तहत स्वतंत्र जांच आवश्यक है, ताकि दोषियों को जवाबदेह ठहराया जा सके। मीडिया संगठनों को भी एकजुट होकर युद्ध क्षेत्रों में प्रेस स्वतंत्रता और सुरक्षा पर वैश्विक दबाव बनाना होगा।

गाज़ा में पत्रकारों की मौत केवल मानवीय त्रासदी नहीं है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और प्रेस की स्वतंत्रता के लिए भी एक बड़ा झटका है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि युद्ध क्षेत्र में सच्चाई सामने लाने वाले लोग सबसे असुरक्षित हैं, और यदि दुनिया ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो पत्रकारिता का पेशा भविष्य में और अधिक जोखिमभरा और सीमित हो जाएगा।

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