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अमेरिका–भारत व्यापार तनाव: वर्तमान स्थिति

1. अत्यधिक टैरिफ की लागू व्यवस्था

  • अमेरिका ने भारती-origin वस्तुओं पर कुल 50 % तक शुल्क लगाकर भारत के निर्यात को बाधित कर दिया है—इसमें 25 % ‘प्रतिपक्षी’ शुल्क और अतिरिक्त 25 % ‘दंडात्मक’ शुल्क शामिल है जो भारत द्वारा रूसी तेल खरीद के कारण लगाया गया है।

  • यह शुल्क 27 अगस्त 2025 से प्रभावी हो चुका है।


2. निर्यात में भारी प्रभाव

  • लगभग 55–66 % (करोड़ों डॉलर मूल्य में) भारत के वार्षिक यूएस निर्यात—जो करीब $87 billion बताये जा रहे हैं—इन टैरिफ से प्रभावित होंगे।

  • प्रमुख प्रभावित क्षेत्र: इंजीनियरिंग वस्तुएँ, हीरा, रत्न, कपड़ा, समुद्री उत्पाद, चमड़ा, कारीगर (हैंडिक्राफ्ट्स), चावल, मसाले, चाय आदि।


3. निर्यातकों की प्रतिक्रिया

  • निर्यातक 27 अगस्त से पहले अमेरिकी आदेशों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं, ताकि अतिरिक्त शुल्क से बचा जा सके।

  • पैनिक बढ़ने से रुपये में गिरावट और शेयर बाजारों में बिकवाली (sell-off) भी दिखाई दे रही है।


4. सरकारी प्रयास और नीति प्रतिक्रिया

  • सरकार ने निर्यातकों को वित्तीय सहायता देने, बैंक ऋण सब्सिडी बढ़ाने और वैकल्पिक बाजारों—जैसे लैटिन अमेरिका, मध्य पूर्व, चीन—की ओर ध्यान केंद्रित करने की योजनाएं बनाई हैं।

  • साथ ही GST सुधार और व्यापार में कानूनी बोझ कम करने जैसी प्रमुख आर्थिक सुधारों को भी तेज़ी से लागू किया जा रहा है ताकि घरेलू व्यापार और निवेश का माहौल मजबूत रहे।


5. दीर्घकालीन चुनौतियाँ और अवसर

  • अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि इस शुल्क वृद्धि से भारत की वार्षिक GDP वृद्धि दर में लगभग 0.8 प्रतिशत प्वाइंट की कमी आ सकती है।

  • लेकिन “ट्रांसशिपमेंट क्लॉज़” जैसी पहलें—निर्यात में शामिल प्राथमिक सामग्री के स्रोत पर जोर देने वाली—कुछ मुद्रीय प्रतिस्पर्धा को बनाए रख सकती हैं क्योंकि अन्य दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को 40 % तक टैरिफ का सामना करना पड़ सकता है।

  • निर्यात के लिए वैकल्पिक बाजारों की दिशा में परिवर्तन एक सकारात्मक रणनीति के रूप में उभर रही है।


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सारांश तालिका

कारक

विवरण

मुख्य प्रभाव

अमेरिका की ओर से लागू 50 % टैरिफ, निर्यात ख़तरे में

प्रभावित क्षेत्र

कपड़ा, रत्न, इंजीनियरिंग गुड्स, समुद्री उत्पाद, मसाले आदि

सरकारी रेस्पॉन्स

वित्त सहायता, ऋण सब्सिडी, नए बाजारों की ओर बढ़ोतरी

समर्थन उपाय

व्यापार नीति सुधार—GST में सरलता, कानूनी बोझ में कमी

दीर्घकालीन असर

GDP वृद्धि दर घट सकती है, लेकिन ऑपरेशनल ढाँचा मजबूत बन सकता है


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