जीवन की समस्याएँ: पंजाब में बाढ़ की मार
- Asliyat team
- Sep 1
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पंजाब, जो भारत का “अन्न-भंडार” माना जाता है, इस बार इतिहास की सबसे भीषण बाढ़ों में से एक का सामना कर रहा है — पिछले 37–40 वर्षों में सबसे ज़्यादा घातक। यह प्राकृतिक आपदा कई स्तरों पर जीवन को प्रभावित कर रही है। नदियों का उफान, लगातार बारिश और टूटे हुए तटबंधों ने गाँवों और कस्बों को पानी-पानी कर दिया। इस आपदा ने न केवल घरों और खेतों को डुबो दिया, बल्कि आम लोगों के जीवन को भी गहरी मुश्किलों में डाल दिया।

1,018 से अधिक गांव पानी में डूब चुके हैं और लगभग 61,000 हेक्टेयर से भी अधिक खेतों को क्षति पहुँची है। पंजाब (भारत) में लगभग 1.46 मिलियन (14.6 लाख) निवासी बाढ़ से प्रभावित हुए है। विशेषकर पठानकोट, गुरदासपुर, अमृतसर आदि जिलों में 438 तेज प्रतिक्रिया टीमें (Rapid Response Teams), 323 मोबाइल मेडिकल टीम, और 172 एंबुलेंस कार्यरत कराई गई है। कई स्थानों पर बोट एम्बुलेंस का उपयोग किया गया है। खालसा एड जैसे एनजीओ ने राहत सामग्री, स्वच्छ जल, राशन, पशु-चारा और वेटरिनरी सहायता प्रदान की जा रही है। पंजाब की कृषि अर्थव्यवस्था—राइस, कपास, चीनी, मक्का, सब्जियाँ—भीषण रूप से प्रभावित; जिससे भोजन सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता को भारी खतरा हुआ है। कई प्रभावित लोग राहत शिविरों में या सड़क किनारे अस्थायी आश्रयों में रह रहे हैं—जहां भोजन, स्वच्छ जल और दवाइयों की भारी कमी है।
पश्चिमोत्तर भारत (पंजाब, हरियाणा, हिमाचल) में अगस्त 2025 में 265 मिमी वर्षा दर्ज की गई—यह अगस्त माह की अब तक की सबसे ज्यादा बारिश है (2001 के बाद की रिकॉर्ड अवधि में)। पूरे क्षेत्र में 34.4% ज्यादा बारिश देखी गई—जो कि देश के औसत (6.1%) से काफी अधिक है। बाढ़ ने सड़कें और पुल तोड़ दिए हैं। कई गाँवों का संपर्क बाहरी दुनिया से कट गया है। परिवहन बाधित होने से न तो राहत सामग्री पहुँच पा रही है और न ही लोग सुरक्षित स्थानों तक जा पा रहे हैं। जीवन की हानि, संपत्ति का नष्ट होना और भविष्य की अनिश्चितता ने लोगों को मानसिक तनाव में डाल दिया है। सामूहिक स्तर पर भी लोगों के बीच असुरक्षा और भय का माहौल है।
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